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TANTRA ASTROLOGY REMEDIES

क्या आपकी कुंडली के ग्रह अस्त हैं?

क्या आपकी कुंडली के ग्रह अस्त हैं?

अस्त ग्रह और उनके फल

ज्योतिष शास्त्र में अस्त ग्रह के परिणामों की विशद व्याख्या मिलती है। अस्तग्रहों के बारे में यह कहा जाता है : “त्रीभि अस्तै भवे ज़डवत”,अर्थात् किसी जन्मपत्रिका में तीन ग्रहों के अस्त हो जाने पर व्यक्ति ज़ड पदार्थ के समान हो जाता है। ज़ड से तात्पर्य यहां व्यक्ति की निष्क्रियता और आलसीपन से है अर्थात् ऎसा व्यक्ति स्थिर बना रहना चाहता है, उसके शरीर, मन और वचन सभी में शिथिलता आ जाती है।

कहा जाता है कि ग्रहों के निर्बल होने में उनकी अस्तंगतता सबसे ब़डा दोष होता है। अस्त ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं, बलहीन हो जाते हैं और यदि वह मूल त्रिकोण या उच्चा राशि में भी हों तो भी अच्छे परिणम देने में असमर्थ रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में एक अस्त ग्रह की वही स्थिति बन जाती है जो एक बीमार, बलहीन और अस्वस्थ राजा की होती है। यदि कोई अस्त ग्रह नीच राशि, दु:स्थान, बालत्व दोष या वृद्ध दोष, शत्रु राशि या अशुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो ऎसा अस्त ग्रह, ग्रह कोढ़ में खाज का काम करने लगता है। उसके फल और भी निकृष्ट मिलने लगते हैं अत: किसी कुण्डली के फल निरूपण में अस्तग्रह का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए।

अस्त ग्रह की दशान्तर्दशा में कोई गंभीर दुर्घटना, दु:ख या बीमारी आदि हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में कोई शुभ ग्रह यथा बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त होते हैं तो अस्तंगतता के परिणाम और भी गंभीर रूप से मिलने लगते हैं। कई कुण्डलियों में तो देखने को मिलता है कि किसी एक शुभ ग्रह के पूर्ण अस्त हो जाने मात्र से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही अभावग्रस्त हो जाता है और परिणाम किसी भी रूप में आ सकते हैं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, किसी पैतृक संपत्ति का नष्ट हो जाना, शरीर का कोई अंग-भंग हो जाना या किसी परियोजना में भारी हानि होने के कारण भारी धनाभाव हो जाना आदि। यह भी देखा जाता है कि यदि कोई ग्रह अस्त हो परंतु वह शुभ भाव में स्थित हो जाए अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो अस्तग्रह के दुष्परिणामों में कमी आ जाती है।

यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में लग्नेश अस्त हो और इस अस्त ग्रह पर से कोई पाप ग्रह संचार करे तो फल अत्यंत प्रतिकूल मिलते हैं। यदि कोई ग्रह अस्त हो और वह पाप प्रभाव में भी हो तो ऎसे ग्रह के दुष्परिणामों से बचने के लिए दान करना श्रेष्ठ उपाय होता है। किसी ग्रह के अस्त होने पर ऎसे ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में अनावश्यक विलंब, किसी कार्य को करने से मना करना अथवा अन्य प्रकार के दु:खों का सामना करना प़डता है। यदि व्यक्ति की कुण्डली में कोई ग्रह सूर्य के निकटतम होकर अस्त हो जाता है तो ऎसा ग्रह बलहीन हो जाता है।

उदाहरण के लिए विवाह का कारक ग्रह यदि अस्त हो जाए और नवांश लग्नेश भी अस्त हो तो ऎसा व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, सुंदर हो या कुरूप, ल़डका हो या ल़डकी निस्संदेह विवाह में विलंब कराता है। यदि इन ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आ जाए तो व्यक्ति जीवन के यौवनकाल के चरम पर विवाह में देरी कर देता है और वैवाहिक सुखों (दांपत्य सुख) से वंचित हो जाता है जिसके कारण उसे समय पर संतान सुख भी नहीं मिल पाता और वैवाहिक जीवन नष्ट सा हो जाता है। अब हम ग्रहों के अस्त होने पर उनके सामान्य फलों पर विचार करते हैं कि किसी ग्रह विशेष के अस्त हो जाने पर उनकी अंतर्दशा में कैसे परिणाम आते हैं

चंद्रमा :

किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा के अस्त होने पर मानसिक अशांति, माँ का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, जन सहयोग का अभाव, व्यक्ति का अशांत हो जाना, दौरे आना, मिर्गी होना, फेफ़डों में रोग होना आदि घटनाएं होती है। यदि अस्त चंद्रमा अष्टमेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति दीर्घकाल तक अवसादग्रस्त रहता है, इसी प्रकार द्वादशेश के प्रभाव में आने पर व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है अथवा किसी बीमारी की निरंतर दवा खाता है।

मंगल

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल के अस्त होने पर उसकी अंतर्दशा में व्यक्ति क्रोधी, नसों में दर्द, रक्त का दूषित हो जाना, उच्चा अवसादग्रस्तता आदि कष्ट हो जाते हैं। यदि अस्त मंगल पर राहु/केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति दुर्घटना, मुकदमेंबाजी या कैंसर का शिकार हो जाता है। यदि मंगल षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो अस्वस्थ्य, दूषित रक्त, कैंसर या विवाद में चोटग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति घोटालेबाज हो जाता है, भष्टाचार में लिप्त रहता है। द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ का सेवन करने लगता है।

बुध :

अस्त बुध की अंतर्दशा में व्यक्ति भ्रमित, संवेदनशील, निर्णय लेने में विलंब करता है। अति विश्वास या न्यून विश्वास का शिकार होकर तनावग्रस्त हो जाता है, अशांत रहता है। उसके शरीर में लकवा, ऎंठन, श्वास रोग अथवा चर्म रोग हो जाते हैं। यदि अस्त बुध षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति तनाव, चर्म रोग या लकवाग्रस्त होकर अस्वस्थ रहता है। यदि बुध अष्टमेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दमा रोग से ग्रसित, मानसिक अवसाद अथवा किसी प्रियजन की मृत्यु का शोक भोगता है। यदि बुध द्वादशेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति किसी नशे का शिकार या रोगग्रस्त रहता है।

बृहस्पति

यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में बृहस्पति अस्त हों और बृहस्पति की अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति लीवर की बीमारी और ज्वर से ग्रसित रहता है। वह अध्ययन से कट जाता है। उसकी आध्यात्मिक रूचि क्षीण हो जाती है, वह स्वार्थी हो जाता है। यदि अस्त बृहस्पति पर अन्य दूषित प्रभाव हों तो वह पुरूष संतान से वंचित हो सकता है। बृहस्पति के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर उच्चा ज्वर, टायफाइड, मधुमेह तथा मुकदमों में फँसना, अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर प्रतिष्ठा में हानि, किसी प्रियजन का वियोग अथवा किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाना, इसी प्रकार द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बन जाते हैं और वह किसी व्यसन से ग्रसित हो जाता है।

शुक्र

जब किसी कुण्डली में शुक्र अस्त हो और उसकी अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति की पत्नी रोगग्रस्त हो जाती है अथवा उसके गर्भाशय या बच्चोदानी में समस्या हो जाती है। व्यक्ति नेत्र रोग, चर्म रोग से भी ग्रसित हो जाता है। अस्त शुक्र के राहु-केतु के प्रभाव में आने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट होती है, वह किडनी विकार या मधुमेह का शिकार हो जाता है। यदि अस्त शुक्र षष्ठेश के दुष्प्रभाव में हों तो मूत्राशय रोग, यौनांगों में विकार अथवा चर्म रोग से ग्रसित होता है, अष्टमेश के दुष्प्रभाव में होने पर दांपत्य जीवन में कटुता, किसी प्रियजन की मृत्यु का दु:ख तथा द्वादशेश के दुष्प्रभाव में होने पर व्यक्ति यौन संक्रमण रोग और नशे का आदि हो जाता है।

शनि :

यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि अस्त हो और उनकी दशा-अन्तर्दशा आ जावे तो वह अस्थि भंग होने, टांगों या पैरों में दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द आदि से पीडित रहता है। उसे कठोर परिश्रम करना प़डता है, उसका कार्य व्यवहार नीच प्रकृति के लोगों से रहता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है। शनि के राहु-केतु से प्रभावित होने पर जो़डो में दर्द रहने लगता है। अस्त शनि के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, जो़डों में दर्द, शरीर में जक़डन रहने लगता है, मुकदमों का सामना करना प़डता है। अस्त शनि के अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर अस्थि टूट जाने, रोजगार में समस्या अथवा किसी प्रियजन का अभाव हो जाना होता है। शनि के द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त रहने लगता है अथवा व्यसन में डूब जाता है।

आईये जानते है सूर्य के कितना समीप आने पर कौन सा ग्रह अस्त होता है।

चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंश या इससे अधिक समीप आता है तो अस्त हो जाता है।

गुरू जब सूर्य से 11 अंश या इससे अधिक समीप पर आने पर स्वतः अस्त हो जाता है।

सूर्य से 13 अंश या इससे अधिक समीप आने पर बुध ग्रह अस्त हो जाता है। किन्तु यदि बुध वक्री है तो वह सूर्य से 11 अंश के आस-पास आने पर अस्त हो जाता है।

सूर्य से 09 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शुक्र ग्रह अस्त हो जाता है। यदि शुक्र वक्री चल रहा है तो वह सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जायेगी।

सूर्य से 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शनि ग्रह अस्त हो जाता है।

सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर मंगल ग्रह अस्त हो जाता है।

राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते है।

नोट अस्त ग्रहो के उपाय मनमर्जी नही करने चाहिये अन्यथा फल विपरीत भी देखे गए है। कुण्डली अध्ययन के बाद ही इनके उपाय करें।

Event Date : 18-Jun-2021

फूल महका देंगे आपके जीवन की बगिया

ये फूल महका देंगे आपके जीवन की बगिया

यह बात तो हम सभी जानते हैं क‍ि हर फूल में कोई ना कोई विशेषता तो होती ही है। फ‍िर चाहे उनकी रंगत हो, खुशबू हो या फ‍िर रंग, उनके आ‍कर्षण से हम अछूते नहीं रहते। लेक‍िन आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि फूलों से ग्रह दोष और उनसे उत्‍पन्‍न होने वाली समस्‍याएं भी दूर हो जाती हैं। जी हां ऐसे ही कुछ फूलों के बारे में हम यहां बताने जा रहे हैं जो न केवल आपका घर और जीवन महकाएंगे बल्कि ग्रहों संबंध‍ित सारी प्रॉब्‍लम देखते ही देखते सॉल्‍व कर देंगे। तो आइए जान लेते हैं

गुड़हल का फूल

इस पौधे को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष प्रबल होता है तो गुड़हल के फूल को प्रत्येक मंगलवार हनुमानजी को अर्पित करने से यह दोष दूर हो जाता है। इसके अलावा संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो भी हनुमानजी को न‍ियम‍ित रूप से प्रात:काल गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। इससे कानूनी और संपत्ति संबंधी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस पौधे के इसी गुण के कारण इसे घर में लगाना शुभ माना जाता है। गुड़हल का फूल जल में डालकर सूर्य को अर्घ्‍य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मां भवानी को नित्य गुड़हल अर्पण करने वाले के जीवन से भी सारे संकट दूर रहते हैं।

हरसिंगार का फूल

हरसिंगार पौधे का संबंध चंद्र ग्रह से है जो अपने आप में ही शांति और ठंडक पहुंचाने वाला ग्रह है। इस पौधे को घर के बीचो-बीच या पिछले हिस्से में लगाने से आर्थिक संपन्नता प्राप्त होती है। इसकी देखभाल में कोताही न करें, इस पौधे के सूख जाने से मन पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है। हरसिंगार इतना अद्भुद होता है क‍ि इसे छूने भर से सारा तनाव दूर हो जाता है। इस फूल को लक्ष्मी पूजन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। मान्‍यता है कि यह फूल जिसके भी घर-आंगन में खिलते हैं, वहां हमेशा सुख-शांति और समृद्धि का निवास होता है।

रातरानी के फूल

रात में ख‍िलने वाले रातरानी के फूल न केवल मदहोश करने वाली खुशबू बिखेरते हैं। बल्कि इसकी सुगंध से मानसिक तनाव भी कम हो जाता है। बता दें क‍ि यह भी चंद्र ग्रह संबंधी दोष दूर करता है। वास्‍तुशास्‍त्र के मुताबिक रातरानी का पौधा जिस भी घर में होता है उस घर पर आने वाली तकलीफें और दु:ख भी दूर कर देता है। लेकिन ध्‍यान रखें कि अगर आपने यह पौधा घर में लगाया है तो कभी भी इसे सूखने न दें। इसकी न‍ियमित देखभाल करते रहें। आप जितना इस पौधे का ख्‍याल रखेंगे वह उतना ही आपकी लाइफ में खुशियां और सुख-शांत‍ि लेकर आता है।

चमेली का फूल

चमेली का फूल भी चमत्कारिक होता है। यह जिसके भी घर में होता है उस घर के लोगों पर नकारात्‍मकता कभी भी हावी नहीं हो पाती। वास्‍तु शास्‍त्र में बताया गया है कि इस फूल के प्रभाव से व्‍यक्ति के विचारों और भावों में धीरे-धीरे बदलाव होने लगता है। सोच सकारात्मक होने लगती है। यही नहीं चमेली के फूल में कई औषधीय गुण होते हैं। बता दें क‍ि यह फूल शुक्र ग्रह संबंधी दोष दूर करता है।

गेंदे के फूल

वास्तव में गेंदा एक फूल नहीं, यह छोटे-छोटे फूलों का एक गुच्छा है। गेंदा कई प्रकार का होता है, लेकिन सबसे ज्यादा उपयोगी और महत्वपूर्ण पीले गेंदे का फूल होता है। गेंदे के फूल का संबंध बृहस्पति ग्रह से है। इसका प्रयोग से ज्ञान, विद्या और आकर्षण की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि हर दिन भगवान विष्णु को पीले गेंदे के फूल की माला चढ़ाने से संतान संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

गुलाब के फूल

गुलाब का फूल रिश्तों पर सीधा असर डालता है।

पूजा में लाल गुलाब का ही प्रयोग करना चाहिए।

लाल गुलाब मंगल से संबंध रखता है और इसकी खुशबू का संबंध शुक्र से होता है।

इस फूल के प्रयोग से प्रेम, आकर्षण, रिश्तों और आत्मविश्वास का वरदान मिलता है।

गुलाब देने से रिश्ते मजबूत होते हैं, प्रेम और वैवाहिक जीवन सुखद हो जाता है।

माना जाता है कि लक्ष्मी जी को हर दिन गुलाब अर्पित करने से आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है।

कमल का फूल

कमल का फूल शुद्ध रूप से दैवीय और आध्यात्मिक फूल माना जाता है।

सफेद रंग का कमल अत्यंत पवित्र और ऊर्जा में सर्वश्रेष्ठ होता है।

इसका संबंध नौ ग्रहों से और दुनिया की समस्त ऊर्जा से है।

कमल का फूल अर्पित करने का अर्थ, ईश्वर के चरणों में स्वयं को अर्पित कर देने से है।

एकादशी को कृष्ण जी को दो कमल के फूल अर्पित करें, आपकी संतान प्राप्ति की अभिलाषा पूरी होगी।

27 दिन तक रोज एक कमल का फूल लक्ष्मी जी को अर्पित करने से अखंड राज्य सुख की प्राप्ति होती है।

अपराजिता के फूल

यह अत्यंत सुंदर नीले रंग का मोर के समान दिखने वाला फूल होता है। अपराजिता का फूल भगवान विष्णु और शनिदेव को प्रिय होता है। इसलिए भगवान विष्णु की कृपा पाने और शनि की पीड़ा से मुक्ति के लिए उन्हें अपराजिता का पुष्प जरूर अर्पित करें। इससे मानसिक सुख-शांति, संपन्नता आती है। शनिदेव को शनिवार के दिन यह फूल अर्पित करने से साढ़ेसाती, ढैया आदि की पीड़ा कम होती है।

आंकड़े का फूल

आंकड़े का फूल भगवान शिव को प्रिय है। आयु, आरोग्य की प्राप्ति के लिए भगवान शिव का सोमवार के दिन आंकड़े के फूल से पूजन करें। जीवन में शत्रु परेशान कर रहे हों या किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल पा रही है तो प्रतिदिन आंकड़े के फूल शिवजी को अर्पित करें। भगवान शिव को सफेद अपराजिता का पुष्प भी चढ़ाया जाता है।

वैजयंती के फूल

प्रेम, आकर्षण, सम्मोहन, आकर्षक व्यक्तित्व प्राप्त करना चाहते हैं तो वैजयंती के फूल आपकी सहायता कर सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को वैजयंती के फूल बहुत प्रिय होते हैं। वे इसकी माला गले में धारण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को प्रतिदिन वैजयंती के फूल चढ़ाए जाएं तो जातक के व्यक्तित्व में भी आकर्षण प्रभाव पैदा हो जाता है। इसके बीजों की माला धारण करने धन की प्राप्ति होती है और समस्त ग्रह दोषों से बचाव होता है। पुष्य नक्षत्र के दिन इसकी माला धारण करना चाहिए।

Event Date : 18-Jun-2021

कुण्डली में वक्री ग्रहों का प्रभाव और समाधान

वक्री ग्रह को लेकर आमतौर पर लोगों के मन में यह धारणा रहती है कि ग्रह वक्री हुआ मतलब जीवन में परेशानियां शुरू लेकिन हर बार ये सही नही होता  कई बार वक्री ग्रह आर्थिक उन्नति और आध्यात्मिक की और ले जाते है तो 

आइए_जानते है वक्री ग्रहो को विस्तार से-

ग्रहों का वक्री होना क्या होता है?

ग्रहों के वक्री होने से तात्पर्य उनका उल्टा चलने से लगाया जाता है लेकिन यह सही नहीं है। कोई भी ग्रह अपने परिभ्रमण पथ पर कभी उल्टा या पीछे की ओर नहीं चलता।

हम सभी जानते हैं सूर्य के चारों ओर प्रत्येक ग्रह अपने ऑर्बिट या कक्षा में अंडाकार पथ पर घूमता रहता है।सभी ग्रहों की एक निश्चित गति भी होती है।

ग्रंथों के अनुसार जब कोई ग्रह अपनी तेज गति के कारण किसी अन्य ग्रह को पीछे छोड़ देता है तो उसे अतिचारी कहा जाता है। जब कोई ग्रह अपनी धीमी गति के कारण पीछे की ओर खिसकता प्रतीत होता है तो उसे वक्री कहते हैं। और जब वह ग्रह वापस आगे बढ़ता हुआ प्रतीत होने लगता है तो उसे मार्गी कहा जाता है।

कभी-कभी कोई ग्रह कुछ समय के लिए स्थिर प्रतीत होता है तो उसे अस्त कहा जाता है।


1. मंगल

चूंकि मंगल पुरुषत्व का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए यह व्यक्ति के ताकत, शक्ति, उत्साह, स्त्रियों के प्रति आकर्षण, झुकाव, संभोग की शक्ति एवं विवाह के प्रति रूझान के बारे में कथन देता है।

जब मंगल वक्री होता है तब पुरुष सगाई, विवाह या अपने जीवनसाथी के प्रति गलत निर्णय ले बैठते हैं बाद में जीवनभर पछताते रहते हैं। 

यदि किसी स्त्री की कुंडली में मंगल वक्री है तथा गोचर में भी वह वक्री हो तो उस स्त्री की विवाह के प्रति, यौन संबंधों के प्रति इच्छाएं पूरी तरह खत्म हो जाती है। वह इन सब चीजों को बकवास मानने लगती है। वक्री मंगल के प्रभाव से व्यक्ति झूठे मुकदमों, पारिवारिक कलह में उलझ जाता है।

2. बुध

बुध का संबंध बौद्धिक क्षमता, विचार, निर्णय लेने की क्षमता, लेखन, व्यापार आदि से होता है।इस दौरान अति उत्साह में आकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्योंकि वक्री बुध अक्सर गलत निर्णय करवा बैठता है। इसलिए जो काम जैसा चल रहा होता है, उसे चलने देना चाहिए। वक्री बुध के समय में कोई नया कार्य प्रारंभ न करें। अनुबंध या ठेकेदारी में नए कार्य हाथ में न लें, वरना घाटा उठाना पड़ता है।

स्त्रियों के गोचर में वक्री बुध होने से वे परिवार, समाज, कार्यस्थल पर अपमान का सामना करती हैं। उनके सभी निर्णय गलत साबित होते हैं। इस कारण उनकी तरक्की भी बाधित हो जाती है।

3. बृहस्पति

बृहस्पति का वक्री होना अत्यंत शुभ माना गया है।इससे व्यक्ति का भाग्य चमकता है। बृहस्पति जिस भाव में वक्री होता है उस भाव के फलादेश में अनुकूल परिवर्तन आते हैं।

इस दौरान व्यक्ति अपने परिवार, देश, संतान, जिम्मेदारियों और धर्म के प्रति अधिक संवेदनशील और चिंतित होकर शुभ कार्यों में प्रवृत्त हो जाता है।

जब व्यक्ति कुंडली के द्वितीय भाव में आकर वक्री होता है तो अपार धन-संपदा प्रदान करता है। सिर से कर्ज का बोझ उतर जाता है। धन संचय होने लगता है। डूबा हुआ पैसा वापस मिल जाता है। नौकरीपेशा व्यक्तियों को प्रमोशन और वेतनवृद्धि मिलती है। नवम भाव में वक्री होने पर भाग्योदय होता है।

द्वादश स्थान में वक्री होने पर व्यक्ति अपने जन्म स्थान की ओर बढ़ता है और संपत्ति प्राप्त करता है। स्त्रियों की कुंडली में वक्री बृहस्पति हो तो उन्हें विवाह सुख की प्राप्ति होती है। आर्थिक तरक्की होती है।

4. शुक्र

शुक्र ग्रह का सीधा संबंध भोग-विलास, यौन सुख से होता है। शुक्र के वक्री होने पर स्त्रियों के मन में दबी भावनाएं बाहर आने लगती हैं।

उनमें कामुकता बढ़ जाती है और उनमें यौन संबंध बनाने भावना तीव्र हो जाती है। उस समय वे अपने पति या प्रेमी से अधिक प्यार पाना चाहती हैं।

यदि उन्हें प्यार न मिले तो वे पुरुषों को त्यागने में जरा भी संकोच नहीं करती। पुरुषों की कुंडली में शुक्र वक्री हो और गोचर में वक्री हो तो उनमें भी यौन इच्छाएं तीव्र हो जाती हैं।

इस दौरान यदि पुरुषों को पत्नी से सुख-संतोष प्राप्त न हो तो वे अन्य स्त्रियों के साथ संसर्ग करने लग जाते हैं। इस दौरान पुरुष शराब का सेवन भी अधिक करने लगते हैं।

 5. शनि

शनि के वक्रत्व को लेकर भारतीय और विदेशी ज्योतिषियों में कुछ बातों पर मतभेद है। कुछ भारतीय ज्योतिषियों का मत है कि शनि का वक्री होना दुर्घटनाएं, धन हानि करवाता है। जबकि इससे उलट विदेशी विद्वान मानते है। कि शनि के वक्री होने पर व्यक्ति को परेशानियों से राहत मिलती है। 

वक्री शनि तनाव व संघर्षों में राहत देता है। ऐसे समय में व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति बढ़ जाती है और वह अपने अच्छे-बुरे कार्यों का स्वयं विश्लेषण करता है।

साथ ही विद्वानों का यह भी मानना है कि शनि सिंह व धनु राशि में प्रतिकूल प्रभाव देता है।

                            शुभम् भवतु

Event Date : 16-Jun-2021

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